पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन में क्या कहा गया

जानिए पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन कैसे हुआ

देश की राजनीति में अपने स्पष्ट और बेबाक विचारों के लिए पहचाने जाने वाले पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मंगलवार सुबह दिल्ली के राम मनोहर लोहिया (RML) अस्पताल में निधन हो गया। 77 वर्षीय मलिक लंबे समय से बीमार चल रहे थे और अंततः उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में शोक की लहर दौड़ा दी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित कई दिग्गज नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया और उन्हें एक साहसी और सच्चा जनसेवक बताया। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन न केवल एक राजनेता का, बल्कि एक निर्भीक आवाज का अंत है।

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का जीवन परिचय

सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने मेरठ कॉलेज से स्नातक और कानून की पढ़ाई पूरी की। राजनीति में उनकी शुरुआत 1970 के दशक में हुई जब वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य बने। बाद में वे कांग्रेस, जनता दल और भाजपा जैसे दलों से जुड़े और विभिन्न पदों पर कार्य किया।

राजनीतिक करियर की प्रमुख झलकियाँ

मलिक ने अपने लंबे राजनीतिक करियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। वे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। इसके अलावा वे उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद और कई बार लोकसभा सदस्य भी चुने गए।

लेकिन उन्हें असली पहचान तब मिली जब वे देश के विभिन्न राज्यों के राज्यपाल बने। उन्होंने बिहार, गोवा, जम्मू-कश्मीर और मेघालय जैसे राज्यों में राज्यपाल के रूप में कार्य किया। खासकर जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल काफी चर्चित रहा, जब अनुच्छेद 370 हटाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया।

अनुच्छेद 370 और सत्यपाल मलिक

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन ऐसे समय पर हुआ है जब देश फिर से जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे और वहां की स्थिति पर बहस कर रहा है। मलिक को जम्मू-कश्मीर के उस समय का राज्यपाल नियुक्त किया गया था जब राज्य बेहद संवेदनशील दौर से गुजर रहा था।

उनकी साफगोई और निर्णय लेने की क्षमता ने उन्हें उस समय एक मजबूत प्रशासक के रूप में स्थापित किया। वे अनुच्छेद 370 को लेकर केंद्र के फैसले के पक्ष में खड़े रहे, लेकिन उसके बाद कई मुद्दों पर सरकार से मतभेद भी रखते रहे।

बेबाकी के लिए जाने जाते थे

सत्यपाल मलिक की सबसे खास बात उनकी बेबाक शैली थी। वे किसी भी राजनीतिक दल या सरकार के दबाव में नहीं आते थे। चाहे वह किसानों का मुद्दा हो, सेना के जवानों की आत्महत्या का मामला हो या फिर किसी योजना की आलोचना, वे खुलकर बोलते थे।

उनकी आलोचनाओं का असर इसलिए भी होता था क्योंकि वे खुद सत्ता के गलियारों का हिस्सा रह चुके थे और प्रशासनिक अनुभव भी रखते थे। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन उन चंद आवाजों में से एक की समाप्ति है जो बिना भय के सत्ता से सवाल करते थे।

प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिक्रिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के निधन पर शोक जताया। उन्होंने लिखा, “सत्यपाल मलिक जी का निधन दुखद है। उनका लंबा सार्वजनिक जीवन, विभिन्न जिम्मेदारियों में समर्पण और राष्ट्र के प्रति निष्ठा प्रेरणादायक रही। उनके परिवार और समर्थकों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं।”

राजनीतिक हलकों में शोक

राहुल गांधी ने भी अपनी श्रद्धांजलि में लिखा, “पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन देश के लिए अपूरणीय क्षति है। वे अपने विचारों और सिद्धांतों के लिए जाने जाते थे। हम उनके साहस को हमेशा याद रखेंगे।”

अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, मायावती, उमर अब्दुल्ला समेत कई नेताओं ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि देश ने एक सच्चे जनसेवक को खो दिया है।

अंतिम यात्रा की तैयारी

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का पार्थिव शरीर उनके दिल्ली स्थित आवास पर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। बुधवार को उनका अंतिम संस्कार बागपत में उनके पैतृक गांव में राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।

उनकी अंतिम यात्रा में कई केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और उनके समर्थक शामिल होने की संभावना है।

एक युग का अंत

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं है, बल्कि एक ऐसी राजनीतिक विचारधारा की समाप्ति भी है जो सच्चाई, साहस और स्पष्टवादिता पर आधारित थी। उन्होंने सत्ता में रहकर भी सत्ताधारियों से सवाल करने का साहस दिखाया, जो आज की राजनीति में दुर्लभ होता जा रहा है।

FAQ

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन ५ अगस्त २०२५ को दोपहर लगभग १:१० बजे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हुआ।

उनकी उम्र ७९ वर्ष थी।

वे लंबे समय से किडनी संबंधी बीमारी से पीड़ित थे और अंततः इसी के कारण उनका निधन हुआ।

उनकी शुरुआत १९७४ में उत्तर प्रदेश विधान सभा से हुई, बाद में वे राज्यसभा, लोकसभा सदस्य भी रहे और कई राज्यों के राज्यपाल बने।

उन्होंने बिहार, ओडिशा, गोवा और जम्मू‑काश्मीर जैसे राज्यों में राज्यपाल की भूमिका निभाई।

उनके कार्यकाल में Article 370 हटाया गया और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया, जो एक बड़ा राजनीतिक निर्णय था।

प्रधानमंत्री ने उनके निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया और उनके स्पष्ट वक्तव्य और नेतृत्व को याद किया।

वे मुखर, स्पष्टवादी और निर्भीक निर्णयों वाले नेता माने जाते थे, जिन्होंने कई राष्ट्रीय मुद्दों पर खुलकर बात की।

कई नेताओं, संगठनों और आम लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और सोशल मीडिया पर भावनाएं साझा कीं।

उनकी जिंदगी और राजनीतिक यात्रा हमें यह सिखाती है कि राजनीति में साहस, स्पष्ट दृष्टिकोण और संवेदना महत्वपूर्ण होती है।