हिमाचल प्रदेश में मानसून का कहर इस साल अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ने की ओर बढ़ रहा है। भारी बारिश, बर्फबारी, भूस्खलन और बाढ़ ने ना केवल जनजीवन को प्रभावित किया है, बल्कि पर्यावरणीय असंतुलन और जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को भी उजागर किया है। दो महीने अभी भी बाकी हैं, लेकिन जो हालात बने हैं, वे आने वाले समय को लेकर चिंता बढ़ा रहे हैं।
लगातार बढ़ रही है बारिश की तीव्रता
इस बार मानसून की शुरुआत से ही हिमाचल प्रदेश में बारिश का रुख असामान्य रहा है। अब तक राज्य के कई हिस्सों में सामान्य से 20% अधिक वर्षा दर्ज की जा चुकी है। सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र मंडी, कांगड़ा, चंबा और कुल्लू रहे हैं, जहां भारी बारिश के कारण कई सड़कें धंस गई हैं और पुल बह गए हैं।
मौसम विभाग ने जारी किए अलर्ट
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने हिमाचल प्रदेश में मानसून का कहर देखते हुए अगस्त और सितंबर के लिए ऑरेंज और येलो अलर्ट जारी किया है। विभाग का कहना है कि अगले कुछ हफ्तों में और भी तीव्र बारिश की संभावना है। खासकर पहाड़ी इलाकों में बादल फटने, भूस्खलन और नदियों में अचानक जलस्तर बढ़ने के खतरे को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है।
भूस्खलन और सड़क दुर्घटनाएं बनी आम बात
बारिश के कारण राज्य में भूस्खलन की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। अब तक करीब 400 से ज्यादा सड़कें भूस्खलन की चपेट में आ चुकी हैं। कई राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध हो गए हैं, जिससे आवाजाही और आपातकालीन सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। कई गांवों का संपर्क जिला मुख्यालयों से पूरी तरह टूट गया है।
पर्यावरणीय असंतुलन के संकेत
जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि हमारे द्वारा किए गए जलवायु परिवर्तन के असर का नतीजा भी है। हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में जंगलों की कटाई, अनियंत्रित निर्माण और पर्यटन गतिविधियों के चलते पहाड़ी क्षेत्रों की प्राकृतिक स्थिति बिगड़ी है।
कृषि और बागवानी पर भी असर
हिमाचल की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा खेती और बागवानी पर निर्भर है। लेकिन इस बार की लगातार बारिश और भूस्खलन ने सेब, आलू और अन्य फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। किसान और बागवानों की मेहनत पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
राहत और बचाव कार्यों में तेजी
राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन ने राहत और बचाव कार्यों में तेजी लाई है। NDRF की टीमें सक्रिय हैं, लेकिन दुर्गम इलाकों तक पहुंचना अभी भी चुनौती बना हुआ है। हेलीकॉप्टर की मदद से कई गांवों में राहत सामग्री भेजी जा रही है।
पर्यटन उद्योग को भी झटका
हिमाचल प्रदेश का पर्यटन उद्योग भी इस आपदा से अछूता नहीं रहा है। मानसून के इस कहर ने राज्य में आने वाले पर्यटकों की संख्या घटा दी है। होटल, होमस्टे और ट्रैवल एजेंसी से जुड़े लोग आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।
क्या बनेगा नया आपदा रिकॉर्ड?
पिछले वर्ष की तुलना में इस साल अब तक ज्यादा भूस्खलन, बारिश और बाढ़ की घटनाएं दर्ज की गई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इसी रफ्तार से हालात बिगड़ते रहे, तो 2025 का मानसून हिमाचल के लिए अब तक का सबसे विनाशकारी हो सकता है।
आगे की राह क्या?
सरकार को चाहिए कि वह सिर्फ आपदा के वक्त ही नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीति बनाकर काम करे। जल संरक्षण, वनों की सुरक्षा, सस्टेनेबल टूरिज्म और अनियंत्रित निर्माण पर नियंत्रण जरूरी है। साथ ही, आम लोगों को भी इस बदलाव के प्रति सजग रहना होगा।