नई दिल्ली / गुरुग्राम —
आरुषि तलवार और राधिका यादव… दो अलग-अलग समय, स्थान और परिस्थितियों में हुई दो बेटियों की मौत, लेकिन सवाल एक जैसा है — क्या कोई माता-पिता अपनी ही औलाद के कातिल हो सकते हैं?
यह सवाल सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक भी है। इन दोनों मामलों में घर की चारदीवारी के भीतर ऐसा कुछ हुआ जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
हत्या की दो घटनाएं, एक जैसी पीड़ा
राधिका यादव (25 वर्ष)
10 जुलाई 2025 को गुरुग्राम के पॉश इलाके सुषांत लोक में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई।
राधिका यादव, एक राज्य स्तरीय टेनिस खिलाड़ी, को उसके ही पिता दीपक यादव ने कथित रूप से गोली मारकर हत्या कर दी।
पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक दीपक यादव ने अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर से पांच गोलियां चलाईं, जिनमें से तीन राधिका की पीठ में लगीं।
हत्या के बाद दीपक ने अपने भाई को कॉल कर कहा – “भाई, मैंने कन्या वध कर दिया है, अब मुझे गोली मार दो।”
आरुषि तलवार (13 वर्ष)
16 मई 2008 को नोएडा के जलवायु विहार में 13 वर्षीय आरुषि तलवार की गला कटी लाश उसके कमरे में मिली।
अगले दिन, घर की छत से घरेलू नौकर हेमराज की लाश बरामद हुई।
शुरू में शक हेमराज पर गया, लेकिन जब उसकी भी हत्या सामने आई तो शक की सुई घर के भीतर ही घूमने लगी।
माता-पिता पर हत्या का आरोप लगा, और उन्हें सीबीआई कोर्ट ने 2013 में दोषी ठहराया।
हालांकि, 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
आरोपी वही जिन पर सबसे ज्यादा भरोसा था
दीपक यादव
हत्या के बाद खुद थाने पहुंचकर आत्मसमर्पण किया।
पूछताछ में उसने बताया कि वह राधिका की सफलता और आर्थिक स्वतंत्रता से असहज महसूस कर रहा था।
फिलहाल आरोपी 14 दिन की न्यायिक हिरासत में है और मामले की जांच जारी है।
डॉ. राजेश और नुपुर तलवार
एक समय देश के सबसे चर्चित आरोपी बने ये माता-पिता अदालत में दोषी भी ठहराए गए, लेकिन बाद में अदालत ने उन्हें निर्दोष माना।
आज भी इस केस को लेकर समाज में दो राय हैं – कुछ लोग उन्हें निर्दोष मानते हैं तो कुछ आज भी शक की नजर से देखते हैं।
हत्या की वजहें: आत्मसम्मान या सामाजिक दबाव?
राधिका के मामले में
पहले सोशल मीडिया पर कयास लगाए गए कि वह इंस्टाग्राम रील बनाने के कारण पिता की नाराज़गी का शिकार हुई।
लेकिन पुलिस ने इन खबरों को गलत बताया।
असल वजह सामने आई: पारिवारिक तनाव, आर्थिक निर्भरता, और पिता को अपमान महसूस होना।
आरुषि केस में
वजह आज भी स्पष्ट नहीं है।
सीबीआई की जांच में कई बार दिशा बदली, सबूतों से छेड़छाड़ हुई, और अंत में अदालत ने माता-पिता को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया।
यह मामला कानून से ज्यादा समाज की मानसिकता पर सवाल खड़ा कर गया।
जांच और मीडिया की भूमिका
राधिका केस में
पुलिस ने शुरुआती भ्रम दूर कर सही तथ्य सामने रखे।
हत्या में प्रयुक्त हथियार बरामद हुआ, आरोपी हिरासत में है और जांच तेज़ी से आगे बढ़ रही है।
मीडिया ने शुरुआत में गलत एंगल दिया, लेकिन पुलिस ने उसे तुरंत खारिज कर दिया।
आरुषि केस में
जांच में कई चूकें हुईं — क्राइम सीन को सुरक्षित नहीं किया गया, मीडिया ट्रायल ने आम धारणा को गढ़ दिया।
इस केस ने भारत की जांच प्रणाली, मीडिया नैतिकता और सामाजिक सोच तीनों को कठघरे में खड़ा कर दिया।
सवाल अभी भी वही है
जब किसी संतान की हत्या का आरोप उसी के माता-पिता पर लगे, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है:
क्या मां-बाप, जिन्हें सबसे ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है, वो भी हत्यारे हो सकते हैं?
राधिका का मामला वर्तमान में है, जहां सबूत सीधे हैं और आरोपी ने अपना अपराध कबूल कर लिया है।
आरुषि का मामला इतिहास बन चुका है, लेकिन आज भी लोगों के ज़हन में सवाल और शक बाकी हैं।
आगे क्या?
राधिका यादव केस में अदालत की कार्यवाही शुरू हो चुकी है।
हर सबूत और गवाही इस मामले की दिशा तय करेगी।
आरोपी की मानसिक स्थिति, पारिवारिक पृष्ठभूमि और सामाजिक दबाव को अदालत में गहराई से देखा जाएगा।
आरुषि केस अब भले ही कानूनी तौर पर खत्म हो चुका है, लेकिन आज भी यह केस एक मिसाल है कि किस तरह हमारी व्यवस्था में जांच और न्याय की प्रक्रिया किस कदर प्रभावित हो सकती है।
आपकी राय क्या है?
– क्या पिता-पुत्री या मां-बेटी जैसे रिश्ते भी इतने कमजोर हो सकते हैं कि वे हिंसा में बदल जाएं?
– या फिर समाज और मीडिया, बिना साक्ष्य के जल्द निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं?
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