सोमवार की वो रात उत्तरकाशी के धाराली गांव के लोगों के लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं थी। आधी रात के बाद आसमान से ऐसी बारिश हुई कि घरों की छतें, खेतों की मिट्टी और आंखों की नींद सब बह गई।
कोई चिल्लाया नहीं, क्योंकि आवाज़ डूब चुकी थी — उस पानी की गड़गड़ाहट में, जो पलों में ज़िंदगी का रास्ता बदल गया।
“हमें लगा जैसे आसमान गिर पड़ा हो...”
गांव के बुज़ुर्ग भोला सिंह बताते हैं, “पहले ज़ोर से कड़कती बिजली चमकी, फिर जो बारिश शुरू हुई, वो कभी नहीं थमने वाली लगी। पानी का बहाव ऐसा था कि दीवारें हिलने लगीं।” वो कांपते हुए कहते हैं, “मैंने पहली बार देखा कि पानी घर से ऊंचा हो गया था।”
लोगों ने बच्चों को उठाया, जरूरी सामान समेटा और अंधेरे में जान बचाने निकल पड़े।
कीर्गंगा नदी: जब पानी ने अपनी राह ही बदल दी
कीर्गंगा नदी, जो वर्षों से एक ही दिशा में बहती थी, उस रात जैसे खुद रास्ता भूल गई। बारिश का दबाव इतना ज्यादा था कि नदी कुछ देर के लिए उल्टी दिशा में बहने लगी। गांववालों ने इसे अपनी आंखों से देखा, और सहम गए।
जब वह वापस अपनी सामान्य दिशा में लौटी, तब उसका बहाव इतना प्रचंड था कि वो खेतों, घरों, रास्तों — सब कुछ अपने साथ बहा ले गई।
सिर्फ घर नहीं, भरोसे भी बह गए
एक मां अपने बच्चों को गोद में लिए बैठी थी — मिट्टी से सने कपड़ों में। आंखें सूखी थीं, शायद रोना भी थम गया था। "कहां जाएं?" — ये उनका पहला सवाल था, जिसका कोई जवाब नहीं था।
कई लोगों का राशन, बर्तन, कपड़े, किताबें और ज़िंदगी की मेहनत सब बह गई। सिर्फ डर और बेबसी रह गई — वो भी बहुत भारी।
प्रशासन आया, पर देर हो चुकी थी
SDRF और NDRF की टीमें पहुंचीं, हेलिकॉप्टर से राहत सामग्री भी आई। लेकिन जब गांववालों ने देखा कि उनके घर, उनकी ज़मीन और उनकी पहचान मिट चुकी है — तब उन्हें राहत से ज़्यादा किसी की आवाज़ चाहिए थी, जो कहे कि “हम तुम्हारे साथ हैं।”
जिलाधिकारी आए, सर्वे हुआ, पर गांव के लोग थक चुके हैं — सरकार के वादों से, मीडिया की फ्लैशलाइट से और कागज़ों की मदद से।
मौसम वैज्ञानिकों ने चेताया था, हमने सुना नहीं
उत्तरकाशी जैसे पहाड़ी इलाके में भारी बारिश का मतलब है खतरा। मौसम विभाग ने चेतावनी दी थी — लेकिन हम, प्रशासन और सिस्टम सबने हल्के में लिया। अब जब कीर्गंगा भी दिशा बदल चुकी है, तो साफ है कि कुदरत हमें इशारा दे रही है — और हम नजरअंदाज कर रहे हैं।
उत्तरकाशी: सिर्फ एक जगह नहीं, एक चेतावनी
उत्तरकाशी अब सिर्फ एक जिला नहीं है, ये उस जलवायु संकट का चेहरा है, जो हर साल और भयावह हो रहा है। यहां घर नहीं टूटते, रिश्ते भी बिखरते हैं।
यह चौथी बार है इस साल, जब यहां जीवन और मौत की रेखा इतनी पतली हो गई है कि बच पाना चमत्कार बन गया है।
हमें अब सिर्फ राहत नहीं, समाधान चाहिए
हम हर बार राहत सामग्री लेकर पहुंचते हैं, लेकिन फिर भूल जाते हैं। उत्तरकाशी को अब सिर्फ तिरपाल, राशन और सांत्वना नहीं चाहिए — उसे सुरक्षा चाहिए, दीर्घकालिक समाधान चाहिए।
बारिश के पानी के लिए मजबूत निकासी व्यवस्था, पर्यावरण के अनुकूल निर्माण नीति और गांववालों को आपदा प्रबंधन की असली जानकारी — यही असली मदद होगी।
इंसानियत अब सबसे बड़ा हथियार है
उत्तरकाशी की इस आपदा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जब कुदरत रूठती है, तो इंसान का सबसे बड़ा सहारा सिर्फ इंसान ही होता है।