इस बारिश ने कई ज़िंदगियों को रोक दिया है। उत्तर प्रदेश के बनारस से लेकर बिहार के पटना और गोपालगंज तक, हर तरफ़ पानी ही पानी है। नदियां अब रास्ता नहीं बल्कि रुकावट बन चुकी हैं। किसी की रसोई डूबी है, किसी का बिस्तर, तो किसी का पूरा घर।
इस बार सिर्फ़ पानी नहीं घुसा… डर भी घरों में उतर आया है।
वरुणा के पलट प्रवाह से घरों में घुसा पानी, अब पलायन की तैयारी — यह अब सिर्फ़ एक लाइन नहीं, ज़मीनी सच्चाई है।
बनारस: जहां गलियों की जगह नावें चलने लगीं
बनारस, एक ऐसा शहर जो आम तौर पर अपने घाटों और धार्मिक आस्था के लिए जाना जाता है, आज बाढ़ के कारण दहशत में है। वरुणा नदी के पलट प्रवाह ने हालात बिगाड़ दिए हैं।
नदियां जब उल्टा बहने लगें, तो समझ लीजिए हालात सामान्य नहीं हैं।
अब बनारस के मोहल्लों में पानी ने घरों का रास्ता पकड़ लिया है। लोग दिन-रात बाल्टी से पानी निकालने की नाकाम कोशिश में लगे हैं। बच्चों के स्कूल बंद हैं, बुज़ुर्गों की दवाइयां फंस गई हैं और रोज़ कमाने वाले दिहाड़ी मज़दूर काम पर जा ही नहीं पा रहे।
पप्पू यादव, जो दशाश्वमेध के पास रहते हैं, कहते हैं – “अब सिर्फ़ भगवान ही बचा सकते हैं। बिजली नहीं, गैस नहीं, न बच्चों के लिए दूध... बस पानी ही पानी है।”
वरुणा के पलट प्रवाह से घरों में घुसा पानी, अब पलायन की तैयारी जैसे दृश्य हर गली, हर मोहल्ले में आम हो गए हैं।
पटना: जब गंगा भी कहर बन जाए
पटना की गंगा आज लोगों के घरों में मेहमान नहीं, मुसीबत बनकर घुसी है। दीयारा क्षेत्र, जो कभी हरे-भरे खेतों के लिए जाना जाता था, अब सिर्फ़ एक जलसमाधि बन गया है।
गांव के लोग अब छतों पर रात गुज़ार रहे हैं। औरतें छोटे बच्चों को गोद में उठाकर ऊंची जगहों की तरफ़ भाग रही हैं। नाव नहीं है, तो ट्रैक्टर से लोगों को निकाला जा रहा है।
पटना निवासी रेखा देवी रोते हुए कहती हैं, “हमने तो खेत में धान लगाया था, लेकिन अब धान भी डूब गया और घर भी। अब क्या बचा?”
यहां भी वरुणा के पलट प्रवाह से घरों में घुसा पानी, अब पलायन की तैयारी जैसी हालत बन चुकी है — हालांकि नदी का नाम अलग हो, पर दर्द तो एक जैसा है।
गोपालगंज: जहां अस्पताल भी बीमार हो गए
सबसे दिल तोड़ने वाला दृश्य गोपालगंज के सदर अस्पताल का है। सोचिए, जहां इलाज मिलना चाहिए, वहां अब घुटनों तक पानी है।
वार्ड में मरीज हैं, लेकिन डॉक्टरों की हालत भी बेबस है। दवाइयों की जगह अब वहां कीचड़ फैला है। एंबुलेंस तक पानी में फंसी हुई हैं।
शिवानी नाम की नर्स बताती हैं, “हम पेशेंट्स को हाथ पकड़कर बाहर निकालते हैं, हर रोज़ ड्यूटी करना किसी जंग से कम नहीं।”
यहां भी लोग कह रहे हैं — वरुणा के पलट प्रवाह से घरों में घुसा पानी, अब पलायन की तैयारी अब सिर्फ़ बनारस की कहानी नहीं, गोपालगंज की भी हक़ीक़त है।
प्रशासन अलर्ट पर, लेकिन बारिश के आगे सब फीका
प्रशासन ने राहत शिविर बनाए हैं। बोट्स तैनात हैं, हेल्पलाइन नंबर जारी हो चुके हैं। लेकिन एक आम आदमी जब घुटनों तक पानी में फंसा हो, तो राहत सिर्फ़ शब्द लगती है।
शहरों के कुछ हिस्सों में मोबाइल नेटवर्क तक नहीं आ रहा। बिजली कब आएगी, कोई नहीं जानता। दुकानों पर राशन खत्म हो रहा है, गैस सिलेंडर की डिलीवरी रुकी हुई है।
लोग अब खुद ही पलायन कर रहे हैं — जरूरी सामान उठाया, बच्चों को पकड़ा, और चल दिए। सबको यही चिंता है: वरुणा के पलट प्रवाह से घरों में घुसा पानी, अब पलायन की तैयारी क्या यही अब हर साल देखना होगा?
राहत शिविर: उम्मीद की एक किरण
सरकारी और निजी स्तर पर राहत शिविर लगाए गए हैं। कहीं NGO खाना बांट रहा है, कहीं कपड़े। लोग आपस में रोटियां और चाय बांटते नज़र आ रहे हैं।
लेकिन भीड़ ज़्यादा है, और ज़रूरतें उससे कहीं बड़ी। एक-एक टेंट में 10-15 लोग रह रहे हैं।
कोई अपने पालतू जानवरों के साथ आया है, कोई गर्भवती महिला। हर किसी के चेहरे पर थकावट, डर और अनिश्चितता झलक रही है।
क्या ये अब हर मानसून की कहानी बन जाएगी?
जलवायु परिवर्तन अब किताबों की चीज़ नहीं रही। ये अब हमारे दरवाज़े पर पानी बनकर खड़ा है। नदियों का पलट बहाव, निचले इलाकों में पानी का भर जाना, हर साल का नया ‘नॉर्मल’ बनता जा रहा है।
वरुणा के पलट प्रवाह से घरों में घुसा पानी, अब पलायन की तैयारी अब चेतावनी नहीं, एक वार्निंग बेल है — जिसे अगर अब भी नहीं सुना गया, तो अगला मानसून और भी डरावना होगा।