बिहार के समस्तीपुर में इस बार नागपंचमी कुछ अलग ही नज़ारे लेकर आई। इनसिंघिया घाट पर हजारों की भीड़ उमड़ी, लेकिन इस बार दर्शन के लिए कोई मूर्ति नहीं, बल्कि असली ज़िंदा कोबरा मौजूद थे। जी हां, समस्तीपुर में नागपंचमी पर सांपों का मेला लगा — जिसमें लोग सांपों को हाथों में, टोकरी में और यहां तक कि मुंह से पकड़ते भी नज़र आए।
यह आयोजन जहां एक ओर लोगों के लिए श्रद्धा का विषय बना, वहीं दूसरी ओर यह कौतूहल और बहस का केंद्र भी बन गया है।
इनसिंघिया घाट: नागों की नगरी बना समस्तीपुर
हर साल की तरह इस बार भी समस्तीपुर के इनसिंघिया घाट पर नागपंचमी के दिन मेला लगा। लेकिन इस मेले की सबसे अनोखी बात है यहां सांपों की लाइव उपस्थिति। लोगों ने अपने घरों से कोबरा और अन्य जहरीले सांप लाकर घाट पर नाग देवता के रूप में पूजा की।
जगह-जगह टोकरी में रखे सांप, मंत्रोच्चार के बीच किए गए अभिषेक और उनकी आरती—यह सब कुछ ऐसा था जो एक आम व्यक्ति को हैरान कर दे।
स्थानीय ग्रामीणों का मानना है कि समस्तीपुर में नागपंचमी पर सांपों का मेला कई वर्षों से लग रहा है और यह उनकी आस्था का प्रतीक है। लोगों का मानना है कि नाग देवता की पूजा से जीवन में सुख, शांति और स्वास्थ्य बना रहता है।
मुंह से कोबरा पकड़ना: परंपरा या खतरा?
इस मेले में कुछ ऐसे भी दृश्य सामने आए जहां श्रद्धालुओं ने सांप को अपने मुंह से पकड़ा। कुछ युवकों ने तो खुलेआम ज़िंदा कोबरा को मुंह से पकड़कर भगवान को चढ़ाया और सोशल मीडिया के लिए वीडियो भी बनाए।
यह दृश्य जितना रोमांचक था, उतना ही खतरनाक भी। विशेषज्ञों की मानें तो कोबरा जैसे ज़हरीले सांप को छूना भी जोखिम भरा होता है, मुंह से पकड़ना तो जानलेवा भी हो सकता है।
लेकिन स्थानीय लोगों के लिए यह परंपरा है। वे इसे कोई स्टंट नहीं बल्कि आस्था का प्रतीक मानते हैं। उनका कहना है कि नाग देवता की कृपा से कोई हानि नहीं होती।
महिलाएं और बच्चे भी नहीं रहे पीछे
सिर्फ पुरुष ही नहीं, महिलाओं और बच्चों ने भी पूरी श्रद्धा से इस मेले में हिस्सा लिया। औरतों ने पारंपरिक परिधान में टोकरी सजाई, उसमें दूध, फूल और नाग देवता की तस्वीर रखी। कुछ महिलाएं असली सांपों को दूध चढ़ाते भी दिखीं।
बच्चों में भी उत्साह था — वे सांपों को छूते, देखते और उनकी कहानियां सुनते नज़र आए। समस्तीपुर में नागपंचमी पर सांपों का मेला उनके लिए एक धार्मिक उत्सव के साथ-साथ जीव विज्ञान की कक्षा जैसा भी था।
सुरक्षा इंतजाम और प्रशासन की चुप्पी
जहां इतने ज़हरीले सांप खुले में थे, वहां सुरक्षा की बात तो होनी ही चाहिए थी। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि पूरे मेले में न तो कोई डॉक्टर था, न ही कोई प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था।
स्थानीय प्रशासन की ओर से भी कोई स्पष्ट बयान नहीं आया। कुछ सामाजिक संगठनों ने इस तरह के खतरनाक आयोजन पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
परंपरा और आस्था के बीच विज्ञान की टकराहट
एक ओर जहां लोग नाग देवता की पूजा को अपनी आस्था मानते हैं, वहीं विज्ञान इसे एक गंभीर खतरा बताता है। जानकारों का कहना है कि ज़िंदा कोबरा का इस तरह खुले में प्रदर्शन और उससे खेलना न सिर्फ़ मानव जीवन के लिए खतरनाक है, बल्कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन भी है।
लेकिन इस सबके बावजूद, समस्तीपुर में नागपंचमी पर सांपों का मेला हर साल बड़े उत्साह से आयोजित होता है। इसमें न केवल स्थानीय लोग, बल्कि दूर-दराज़ से श्रद्धालु शामिल होते हैं।
सांपों की पूजा: भारत की गहरी जड़ें
भारत में नाग देवता की पूजा का इतिहास बहुत पुराना है। नागपंचमी को विशेष महत्व दिया जाता है, क्योंकि यह दिन माना जाता है कि सर्प शक्ति प्रसन्न होती है। लोग घरों की दीवारों पर सांप की आकृति बनाते हैं, दूध चढ़ाते हैं और व्रत रखते हैं।
समस्तीपुर में नागपंचमी पर सांपों का मेला इसी परंपरा का जीवंत उदाहरण है, जहां पूजा सिर्फ तस्वीरों या मूर्तियों से नहीं, बल्कि ज़िंदा नागों के साथ होती है।
निष्कर्ष: परंपरा के साथ जागरूकता भी ज़रूरी
इस अनोखे मेले ने एक बार फिर दिखाया कि भारत में आस्था कितनी गहराई से जुड़ी होती है। लेकिन इस आस्था के साथ सुरक्षा और जागरूकता भी उतनी ही ज़रूरी है।
कोबरा को मुंह से पकड़ना हो या खुलेआम मेले में घूमते सांप—ये सब परंपरा का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन सुरक्षा और कानून का भी पालन होना चाहिए।
समस्तीपुर में नागपंचमी पर सांपों का मेला भारत की विरासत और विश्वास का चित्र है — जिसे हमें सहेजना है, लेकिन संतुलन के साथ।